सोमवार, 25 अक्टूबर 2010

दोष तो लोगों का अपना है?

बिहार चुनाव में वे लोग जो वस्तुतः अपराधी प्रविर्ती के हँ,ने जम कर नितीश सर्कार का विरोध किये है.यह अब किसी से छिपा नहीं है.मोहिउद्दीन्नगर विधानसभा के चुनाव में मात्र ६ लोग जिनमे एक पर्व मंत्री भी शामिल है ने जी तोर कोशिश की है की बीजेपी उम्मीदवार रना गंगेश्वर सिंह हार जाये,पर खुदा भी होता है?पैसा पुच और दबंगता से किसी की किस्मत कोई छीन नहीं सकता है.जिन लोगों को नितीश सरकारमें बान्हे चढाने का मौका नहीं था,वे एन केनप्रकारेण अपनी कमाई बरक़रार रक्खी और सेंध मरी कर जद-यु में घुसने में कामयाब रहे.कोई मंत्री का रिश्तेदार बनकर, तो कोई नाग मणि लेकर.नितीश जी से भूल हुई मैनहीं कहूँगा,हा निश्चिंतता ने उन्हें प्रश्रय दिला दिया!अवैध शराब के धंधे से जवाहर,कृष्णा,अरुण, गुल्लू जैसे लोग बेलोरो पर चढ़ कर राज निति करते रहे और नितीश की पुलिश इनके कहने पर ठाणे को राजनीती का अड्डा बन जाने दिया?नरेन्द्र सिंह यदि नहीं जन पाए की उनके नाम का इश्तेमाल कर ये दबंग बने घूमते रहे,तो दुर्भाग्य ही कहा जायेगा?आज यही लोग राजद विधायक के लिए ,पैसा और पौच बाटते,वोट को मोर्टे हुए नजर आये .रणजी भी इन्ही लोगो को प्रश्रय देते थे। क्या आज भी राणाजी की आँखे खुलेंगी? वे किस्मत से जीतेंगे,न की अपराधी लोगों के पनाहगाह बन्ने से? ऐसे में राना या नितीश सबको समझ लेना चाहिए की सिर्फ बड़ी- बड़ी बातें करके राजनीती में बहुत दिन प्रभुत्व नहीं बहाए रहा जा सकता है.पूर्ण बहुमत नहीं मिलना एक सबक होगो,क्या?यदि किस्मत से सरकार बनती है तो क्या मोहिउद्दीन्नगर के इन ६ अवांछित तत्वों को सजा मिलेगी? क्या इसबार नितीश सचमे अपराधियों और भ्रस्ताचारियों को सलाखों के पीछे भेज पाने में कामयाब होगे?हमें ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए?

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी तो नहीं ...

बिहार में ६ चरणों में चुनाव घोषित हुए है.३ चरण गुरु मीन राशी तथा अगले ३ में कुंभ के होंगे.ग्रहों की स्थिति भी कुछ और इशारे केर रही है .चुनावी वाक्य युद्ध शुरू हो चले है.अन्चाल्लू जैसे शब्द-तीर चुभ चुके है आहत नितीश जी तल्खी में है.मुस्लिम मतदाता जुड़े है तो सवर्ण मतों में बिखराव दिख रहा है.दो छेत्रों के परस्पर मतों को समेटने की फोशिश हुई है.विजय व् रामलखन के उदाहरण से स्पष्ट है.साईकिल योजना भी जातीय मतों को तोरता नजर आ रहा है.पर बिहार में भितरघात की बहुत सम्भावना रहती है.टिकट बटवारे से लेकर मत डालने तक कौन क्या करेगा कहा नहीं जा सकता है.चुनाव बाद भी दल टूट सकतें है.नये समीकरण बन सकते है। जिसकी की सम्भावना इस बार ज्यादा दिख रही है.यह चुप्पी खतरनाक है जो महसूस तो की जा रही है पर ध्यान नहीं खीच पा रही है.वक़्त का तकाजा होता है। कभी नव पर गाड़ी,कभी गाड़ी पर नव.कांग्रेस की लीला अपरम्पार है,लालू का साथ छोरकर फिर उसी के साये में ?नही जी कभी नही.हाजीपुर की हर का बदला ?या कांग्रेस से साथ गांठ? अभी तो खुलना बैंक है.वोट का। जोर-तोर का। जो नै उनके नहीं होने का?फिल गुड बहुत बुरी चीज है भाई!!!

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

परक्रमविहीन राजा लोकप्रिय नहीं होता

नक्सली के नाम पर हतास राजनीतिज्ञों की चालें बिहार में न सफल होनी थी, न हुई। दुखद यह है की लुकास टेटे झारखंडी होने की वजह से बलि का बकरा बन गए। उस आदिवासी के छुटने पर क्या राज खुलने का डर था? बंधक पुलिसकर्मियों की रिहाई में लुकास टेटे भी जीवित शामिल होता तो राजा का पराक्रम कह सकते थे। बिहार में चुनाव घोषित हो चुके है। पार्टियाँ अपनी शान में कशिदें पढ़ रही है। चुनावी दांव पेंच भी चलने लगे है। चुकि जद 'यु' में अवांछित तत्वों के शामिल हो जाने से सटीक व् करे निर्णय नहीं लिए जा पा रहे इसलिए जनता में बेचैनी है। मोहिउद्दीन्नगरका उदाहरण लें। एक ही सामाजिक कार्यकर्ता है सही मायनों में तो वह है रंधीर भाई। इस युवा ने बोचहा पुल के लिए आत्मदाह का प्रयास किया। प्रखंड से लेकर जिले तक जन आन्दोलनों में अग्रणी रहा। ४ सितम्बर को वह व्यक्ति कांग्रेस ज्वाइन करता है और ६ सितम्बर को एक प्रदर्शन के दोरान सैप के जवान उसे घेरकर बुरी तरह पीटते और चिंताजनक हालत में पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचा देते है। उसका कसूर बस इतना है की मोहिउद्दीन्नगर में डकैती के विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों के साथ था। इसमें पुलिस और राजनीतिज्ञों के मेल की बू साफ तौर पर आ रही है। एक पखवारा पहले पटना उच्च न्यायालय ने समस्तीपुर जिले की विधि व्यवस्था पर प्रश्नचिंह खरा किया है। लालू का जंगलराज राजा को दीखता था और अपने राज्य में इस हाई कोर्ट की टिप्पणी पर उनकी कोई सोंच नहीं? ऐसे ही उदाहरण आते रहे तो कल "सुशासन" शब्द भी शर्मा जायेगा। जनता हमेशा राजा को पराक्रमी देखना चाहती है। विकास से ज्यादा बड़ा फैक्टर अपराध है। जंगलराज के लिए ही जनता ने लालू को छोरा जो १५ वर्ष से थे। रंधीर भाई के मामले में यदि दोषियों को दण्डित नहीं किया गया तो राजा से टिकट की याचना करने गए दबंग नेता के गुर्गे और भी बहुत कुछ कर सकते है। मोहिउद्दीन्नगर राजपूत-यादव का छेत्र है, समवेदनशील है। यहाँ नजर स्लीप नहीं करनी चाहिए।मैं तो कहूँगा रंधीर जैसे युवा को जदयु के विकास रथ पर होना चाहिए था। जद यु में क्या अच्छे युवाओं के लिए जगह नहीं है? मैं नहीं मानता की चंद नेताओं के हटने से बिहार के राजपूत, भूमिहार व् ब्रह्मण नितीश जी का साथ छोर देंगे। लेकिन जैसे नक्सल समस्या पर थोरा पराक्रम उन्होंने प्रदर्शित किया वैसे ही सुशासन के लिए भी आवश्यक है। नितीश जी कभी खुद लालू प्रसाद के साथ हुआ करते थे। आखिर उन्हें अलग होने की जरूरत क्यों महसूस हुई? इसी तरह जमशेद अशरफ जी के हटने के बाद उनके प्रिये लोगों पर गाज क्यों नहीं गिरी जो आज भी समस्तीपुर में अवैध शराब का कारोबार धड़ल्ले से कर रहे है और नितीश जी का पुलिस महकमा हफ्ता वसूल रहा है? क्या ये लोग जद यु को वोट करावेंगे? राज्य सभा भेजे जाने के वक्त हरिकिशोर बाबु पर उपेन्द्र कुशवाहा भरी पर गए। उन्ही कुशवाहा को उनके धुर विरोधी रामलखन महतो को पार्टी में लेकर कद छोटा क्यूँ किया गया? क्या रामलखन जी और विजय कुमार चौधरी जी रमा देवी-राधामोहन सिंह की जोड़ी की तरह दोनों सीट निकाल पाएंगे? मेरा स्पस्ट मानना है की नितीश सरकार कमबैक करेगी। लेकिन जैसा नक्सल पुलिस प्रकरण हुआ या भाई रंधीर की नाजायज पिटाई हुई इस तरह की घटनाओं पर राजा की नीति स्पस्ट और कड़ी होनी चाहिए। लोकप्रियेता की शर्त यही है।

रविवार, 11 जुलाई 2010

मीडिया की खोजी नजरे कहाँ है?

भाविस्यवानियो और प्रदर्शन के साथ फूटबाल महाकुम्भ का समापन हो गया.स्पेन को ताज मिला होललैंड लगातार जीत का सिलसिला कायम न रख सका.आंसुओं और ख़ुशी के साथ स्टेडियम दीवानाबर हुआ जा रहा था .पर मै जीत की अपनी भाविस्यवानियो की जीत पर भी खुश न था। कारन की ओक्टोपुस की झंडा वाला बक्शा पकरने और उसे जीत की भाविस्यवानी बताने वाली मीडिया का बिकाऊ चेहरा या अंधी दौर की तरफ भागने की प्रवृति चिंतित करने वाली थी। मेरे ट्विट्टर को देखिये, पता चलेगा की सिर्फा फूटबाल ही नहीं एशिया कप तथा इंग्लैंड की पहली आई सी सी वर्ल्ड कप जितने की भी मैंने भाविस्यवानिया की हुई है। यह भाविस्यवानिया कोई अत्काल्ताप्पू नहीं है वरन पंद्रह बर्षों की खोज का परिणाम है, ऐसी खोज जिसकी सटीकता से सारे ज्योतिषी भी चकरा जायेंगे । दुःख इसी बात का है की कितने संपादक/पत्रकार जो मुझे एक पत्रकार के रूप में भी जानते है और मेरी ज्योतिश्विद्दय का कमाल भी महसूस कर चुके है,वे भी कम से कम भारतीयता की अपनी सहधर्मिता ही निभाने के लिए ओक्टोपुस के खेल और भाविस्यवानी की गंभीर ज्योतिशिये आधार की चर्चा करते हुए ही उल्लेखित तो करते? मुझे प्रचार से ज्यादा अपने काम को आगे बढ़ाना है इसीलिए मै सिर्फ ट्विट्टर पर ही लिख कर या किसी संपादक को एस एम् एस कर अपनी भाविस्यवानियो से अवगत करा देना भर अपना फर्ज निभाता हु।किसी गंभीर खोज के लिए जो प्रोत्साहन मिलना चाहिए वह यहाँ की मिडिया ने मुझे कभी नहीं दिया।हो सकता है की कोई पंडित समाज इसे अपनी हकमारी समझ रहा हो,पर उन्हें बता दू की मैंने अबतक किसी की कुंडली बनवाने का एक पैसा भी नहीं लिया है.और कोशिश की है की ज्यादा से ज्यादा लोगो की कुंडली बनाकर अपनी खोज को आगे बढ़ता रहू.काम तो एक दिन बोलेगा ही।

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

आखों में इकरार पर, होंठो पर इनकार

ज्योतिष हमारे जीवन में कितना महत्व रखता है, यह धोनी की चट मंगनी पट व्याह से साबित हो जाता है। जिन नेताओं को मंत्रिपद पर बैठने के लिए ज्योतिषिये सलाह की जरूरत पड़ती है वे भी इसे ढकोसला सार्वजनिकरूप से स्वीकारते है। क्या आश्चर्य नहीं है? हम बेटी-बेटे का विवाह तो ज्योतिष-महुर्ता के अनुसार करते है पर पेपर्स मै व्यान कुछ और देते है .क्या यही हमारी नैतिकता का तकाजा है? दरअसल हम इसे गुप्त विद्या का गुप्त लाभ ही स्वीकारते है,सार्वजानिक शेयर नहीं चाहते। रही बात ज्योतिस विद्द्य की तो मेरी अबतक की भविष्यवानियों को जिन लोगो ने जाना है, उन्हें यकीं है की सटीक गणना भी की जा सकती है। दोष कुछ कुछ उन ज्योतिषियों की भी है जो फलाफल सतही दृष्टी से कर सिर्फ खानापूर्ति कर देते है। वे सिर्फ गनितिए गणना से बचने के लिए पूरी ज्योतिश्विद्दय को ही बदनाम कर देते है। अष्टकवर्ग ज्योतिष की वह शाखा है जो आज का फलाफल भी बताने मै सक्षम है। इसी वजह से मै खेलों का त्वरित फलाफल दे पता हूँ। इंग्लैंड का पहला आई सी सी टी-२० वर्ल्ड कप जितने की भविष्यवाणी हो या भारत का पंद्रह साल बाद एशिया कप, ये सफल भविष्यवानियाँ अष्टक वर्ग की चमत्कारिक पद्धति की वजह से की गयी। वर्ल्ड कप फूत्बल्ल मै कौन आज जीतेगा का मेरा त्वित खूब पढ़ा गया। जिसे भी ज्योतिष के बारे मै कुछ भी गलत फहमी हो मुझसे संपर्क करे मै दूर करने का वादा करता हूँ। यह भारत की प्रच्याविद्दया है। और संसार मै सबसे सटीक। मै इसकी हिन्तायी बर्दाश्ता नहीं कर सकता.

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

कितने सपनो ने दम तोरा है?

शिशु सोते हुए मुस्कुराता है यानि हसीं सपने देख रहा होता है.हम बड़े होकर भी सपने देखते हैं.पर क्या मुस्कुरा पाते हैं ? दरअसल बड़े होकर बालसुलभ चीजों से हम बहूत दूर हो जाते हैं। वोह निश्छल हँसी,वोह सुखद अहसास जीवन मैं शायद ही कभी मिल पति है। ऐसा क्या हो जाता है? कहते है की ज्यों ज्यों हम बड़े होते है दुनिया भर की बुराइयाँ हमें घेरती जातीं हैं छल, प्रपंच,धोंखा,स्वार्थ आदि से घिर जातें है। नतीजा इश्वरिये गुणों को खो देते है। आत्मिक मुस्कान उसे कहते है जो दुसरे को मुस्कुराने पर मजबूर कर दे। एक युवा क्या सपना देखता है??अच्छी सी एक नौकरी ,एक सुंदर सा घर या एक कार? इससे अधिक तो शायेद और कुछ नहीं?स्टुडेंट अच्छी शिक्छा,सुखद भविष्य से ज्यादा और क्या सपना देखेगा? एक उम्रदराज आदमी बच्चों से सेवा के अलावा भी कूच चाहेगा क्या? बीमार आदमी भी यही चाहेगा। एक पत्नी पति से प्यार व् सम्मान के सिवा भी कुछ चाहेगी क्या?पर आज ये सपने पहुच से बहार होते जा रहे, क्यूँ? सिस्टम या समाज दोषी है इसके लिए? या हम और आप? जो अपने लिए तो न्याय चाहतें हैं और जब दूसरों की बारी आती है तो टांग अडाने से बज नहीं आते। फर्क बस इतना ही है। दोष सिस्टम का भी है जो गलत का पोषण करता आ रहा। ट्रेन में बैठने वाला दूसरो को जगह देना नहीं चाहता , तो जिंदगी में कोई क्या जगह देगा? जो दुसरो को रुलाता हो वह हँसाने की ख़ुशी से भी वाकिफ होगा क्या? तो करे क्या? बस आज से ही अपने को बदलना होगा, तभी शयेद दुनिया के गम मिट सकेंगे, सपने मुस्कुरा सकेंगे.

मंगलवार, 29 जून 2010

दुनिया तो सुनेगी , सुनती रही है.

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जो कहा उसका आशय मै नहीं जानता पर जबभी कोई भारतीय बुद्धिजीवी बाहरी देशों में बोलता है तो पूरी दुनिया उसे सुनती है। भारतीय प्रधानमंत्री बुद्धिजीवी भी है और सहृदय नेता भी। अपने मद्धिम स्वरों में वे देश दुनिया को भारतीय नजरिये से वाकिफ करते रहते है। पूर्व प्रधानमंत्री व् ओजस्वी भाषण करने वाले श्री अटल बिहारी वाजपेई जब संयुक्त राष्ट्र संघ में पहली बार हिंदी में संबोधन कर रहे थे तो भी पूरी दुनिया में उन्हें सुना जा रहा था। अटल जी की भाषण कला अद्वितीय थी। श्रोता मंत्र मुग्ध होकर उन्हें सुनते थे। और पीछे चलें तो युवा स्वामी विवेकानंद की तरुनाई की लालिमा उन्हें दिए गए शुन्य विषय की उदित सूर्य-लालिमा की भांति अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रहा था। स्वामी विवेकानंद एक उसी भाषण के कारण दुनिया में सुविख्यात हुए। भारतीय बोद्धिकता की तपोभूमि पर कितने उर्जावान , युवा-वृद्ध सुघर सम्भाशनकर्ता हुए गिनने की जरुरत नहीं। सुभाष चन्द्र बोस का सा जोश शायद श्रीमान बराक ओबामा में न हो पर वे एक आज़ाद ख्याल अमेरिकी युवा राष्ट्रपति है , संभावनाओं से लबालब। उनके सामने वरिष्टता और शालीनता की मूर्ति श्री सिंह निश्चय ही प्रसंसनिये है। आर्थिक मंदी के दौर में मनमोहन जी की विशेसग्य छवि भी शायद अनुकार्निये है। शायद इसी लिए पूरी दुनिया उनको और भारतीय अर्थव्यवस्था को मंत्रमुग्ध देखती है।