शुक्रवार, 17 सितंबर 2010
तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी तो नहीं ...
बिहार में ६ चरणों में चुनाव घोषित हुए है.३ चरण गुरु मीन राशी तथा अगले ३ में कुंभ के होंगे.ग्रहों की स्थिति भी कुछ और इशारे केर रही है .चुनावी वाक्य युद्ध शुरू हो चले है.अन्चाल्लू जैसे शब्द-तीर चुभ चुके है आहत नितीश जी तल्खी में है.मुस्लिम मतदाता जुड़े है तो सवर्ण मतों में बिखराव दिख रहा है.दो छेत्रों के परस्पर मतों को समेटने की फोशिश हुई है.विजय व् रामलखन के उदाहरण से स्पष्ट है.साईकिल योजना भी जातीय मतों को तोरता नजर आ रहा है.पर बिहार में भितरघात की बहुत सम्भावना रहती है.टिकट बटवारे से लेकर मत डालने तक कौन क्या करेगा कहा नहीं जा सकता है.चुनाव बाद भी दल टूट सकतें है.नये समीकरण बन सकते है। जिसकी की सम्भावना इस बार ज्यादा दिख रही है.यह चुप्पी खतरनाक है जो महसूस तो की जा रही है पर ध्यान नहीं खीच पा रही है.वक़्त का तकाजा होता है। कभी नव पर गाड़ी,कभी गाड़ी पर नव.कांग्रेस की लीला अपरम्पार है,लालू का साथ छोरकर फिर उसी के साये में ?नही जी कभी नही.हाजीपुर की हर का बदला ?या कांग्रेस से साथ गांठ? अभी तो खुलना बैंक है.वोट का। जोर-तोर का। जो नै उनके नहीं होने का?फिल गुड बहुत बुरी चीज है भाई!!!
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