रविवार, 11 जुलाई 2010

मीडिया की खोजी नजरे कहाँ है?

भाविस्यवानियो और प्रदर्शन के साथ फूटबाल महाकुम्भ का समापन हो गया.स्पेन को ताज मिला होललैंड लगातार जीत का सिलसिला कायम न रख सका.आंसुओं और ख़ुशी के साथ स्टेडियम दीवानाबर हुआ जा रहा था .पर मै जीत की अपनी भाविस्यवानियो की जीत पर भी खुश न था। कारन की ओक्टोपुस की झंडा वाला बक्शा पकरने और उसे जीत की भाविस्यवानी बताने वाली मीडिया का बिकाऊ चेहरा या अंधी दौर की तरफ भागने की प्रवृति चिंतित करने वाली थी। मेरे ट्विट्टर को देखिये, पता चलेगा की सिर्फा फूटबाल ही नहीं एशिया कप तथा इंग्लैंड की पहली आई सी सी वर्ल्ड कप जितने की भी मैंने भाविस्यवानिया की हुई है। यह भाविस्यवानिया कोई अत्काल्ताप्पू नहीं है वरन पंद्रह बर्षों की खोज का परिणाम है, ऐसी खोज जिसकी सटीकता से सारे ज्योतिषी भी चकरा जायेंगे । दुःख इसी बात का है की कितने संपादक/पत्रकार जो मुझे एक पत्रकार के रूप में भी जानते है और मेरी ज्योतिश्विद्दय का कमाल भी महसूस कर चुके है,वे भी कम से कम भारतीयता की अपनी सहधर्मिता ही निभाने के लिए ओक्टोपुस के खेल और भाविस्यवानी की गंभीर ज्योतिशिये आधार की चर्चा करते हुए ही उल्लेखित तो करते? मुझे प्रचार से ज्यादा अपने काम को आगे बढ़ाना है इसीलिए मै सिर्फ ट्विट्टर पर ही लिख कर या किसी संपादक को एस एम् एस कर अपनी भाविस्यवानियो से अवगत करा देना भर अपना फर्ज निभाता हु।किसी गंभीर खोज के लिए जो प्रोत्साहन मिलना चाहिए वह यहाँ की मिडिया ने मुझे कभी नहीं दिया।हो सकता है की कोई पंडित समाज इसे अपनी हकमारी समझ रहा हो,पर उन्हें बता दू की मैंने अबतक किसी की कुंडली बनवाने का एक पैसा भी नहीं लिया है.और कोशिश की है की ज्यादा से ज्यादा लोगो की कुंडली बनाकर अपनी खोज को आगे बढ़ता रहू.काम तो एक दिन बोलेगा ही।

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

आखों में इकरार पर, होंठो पर इनकार

ज्योतिष हमारे जीवन में कितना महत्व रखता है, यह धोनी की चट मंगनी पट व्याह से साबित हो जाता है। जिन नेताओं को मंत्रिपद पर बैठने के लिए ज्योतिषिये सलाह की जरूरत पड़ती है वे भी इसे ढकोसला सार्वजनिकरूप से स्वीकारते है। क्या आश्चर्य नहीं है? हम बेटी-बेटे का विवाह तो ज्योतिष-महुर्ता के अनुसार करते है पर पेपर्स मै व्यान कुछ और देते है .क्या यही हमारी नैतिकता का तकाजा है? दरअसल हम इसे गुप्त विद्या का गुप्त लाभ ही स्वीकारते है,सार्वजानिक शेयर नहीं चाहते। रही बात ज्योतिस विद्द्य की तो मेरी अबतक की भविष्यवानियों को जिन लोगो ने जाना है, उन्हें यकीं है की सटीक गणना भी की जा सकती है। दोष कुछ कुछ उन ज्योतिषियों की भी है जो फलाफल सतही दृष्टी से कर सिर्फ खानापूर्ति कर देते है। वे सिर्फ गनितिए गणना से बचने के लिए पूरी ज्योतिश्विद्दय को ही बदनाम कर देते है। अष्टकवर्ग ज्योतिष की वह शाखा है जो आज का फलाफल भी बताने मै सक्षम है। इसी वजह से मै खेलों का त्वरित फलाफल दे पता हूँ। इंग्लैंड का पहला आई सी सी टी-२० वर्ल्ड कप जितने की भविष्यवाणी हो या भारत का पंद्रह साल बाद एशिया कप, ये सफल भविष्यवानियाँ अष्टक वर्ग की चमत्कारिक पद्धति की वजह से की गयी। वर्ल्ड कप फूत्बल्ल मै कौन आज जीतेगा का मेरा त्वित खूब पढ़ा गया। जिसे भी ज्योतिष के बारे मै कुछ भी गलत फहमी हो मुझसे संपर्क करे मै दूर करने का वादा करता हूँ। यह भारत की प्रच्याविद्दया है। और संसार मै सबसे सटीक। मै इसकी हिन्तायी बर्दाश्ता नहीं कर सकता.

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

कितने सपनो ने दम तोरा है?

शिशु सोते हुए मुस्कुराता है यानि हसीं सपने देख रहा होता है.हम बड़े होकर भी सपने देखते हैं.पर क्या मुस्कुरा पाते हैं ? दरअसल बड़े होकर बालसुलभ चीजों से हम बहूत दूर हो जाते हैं। वोह निश्छल हँसी,वोह सुखद अहसास जीवन मैं शायद ही कभी मिल पति है। ऐसा क्या हो जाता है? कहते है की ज्यों ज्यों हम बड़े होते है दुनिया भर की बुराइयाँ हमें घेरती जातीं हैं छल, प्रपंच,धोंखा,स्वार्थ आदि से घिर जातें है। नतीजा इश्वरिये गुणों को खो देते है। आत्मिक मुस्कान उसे कहते है जो दुसरे को मुस्कुराने पर मजबूर कर दे। एक युवा क्या सपना देखता है??अच्छी सी एक नौकरी ,एक सुंदर सा घर या एक कार? इससे अधिक तो शायेद और कुछ नहीं?स्टुडेंट अच्छी शिक्छा,सुखद भविष्य से ज्यादा और क्या सपना देखेगा? एक उम्रदराज आदमी बच्चों से सेवा के अलावा भी कूच चाहेगा क्या? बीमार आदमी भी यही चाहेगा। एक पत्नी पति से प्यार व् सम्मान के सिवा भी कुछ चाहेगी क्या?पर आज ये सपने पहुच से बहार होते जा रहे, क्यूँ? सिस्टम या समाज दोषी है इसके लिए? या हम और आप? जो अपने लिए तो न्याय चाहतें हैं और जब दूसरों की बारी आती है तो टांग अडाने से बज नहीं आते। फर्क बस इतना ही है। दोष सिस्टम का भी है जो गलत का पोषण करता आ रहा। ट्रेन में बैठने वाला दूसरो को जगह देना नहीं चाहता , तो जिंदगी में कोई क्या जगह देगा? जो दुसरो को रुलाता हो वह हँसाने की ख़ुशी से भी वाकिफ होगा क्या? तो करे क्या? बस आज से ही अपने को बदलना होगा, तभी शयेद दुनिया के गम मिट सकेंगे, सपने मुस्कुरा सकेंगे.